चुम्बक | Magnet

चुंबक क्या है? Chumbak kya hai

ऐसे पदार्थ जिसमें आकर्षण एवं प्रतिकर्षण के साथ-साथ दिशा-निर्देश का गुण होता है चंबुक  कहलाता है। चुम्बक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं :-

(1) प्रकृतिक चुम्बक (Natural Magnet )

ये लोहे का ऑक्साइड होते है जिनका रासायनिक सूत्र Fe3O4 है।

(2) कृत्रिम चुम्बक ( Artificial Magnet )

आधुनिक तकनीक की मदद से निर्मित चुम्बक को चुम्बक कृत्रिम चुम्बक कहलाते हैं या कृत्रिम तरीकों से बनाये गए चुम्बक को कृत्रिम चुम्बक कहते है । ये लोहे, इस्पात आदि से बनाये जाते हैं। कृत्रिम चुम्बक को अपने आवश्यकता अनुसार आकार में बनाये जाते है जैसे - छड़ चुम्बक, घोड़ानाल चुम्बक, चुम्बकीय सुई आदि।

◆ कृत्रिम चुम्बक को मुख्यतः दो भागों में बता जाता है

i. स्थाई चुम्बक | Permanent Magnet | sthayi chumbak

इसके द्वारा निर्मितचुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र को विचूम्बकित (Demagnetize) करने के लिए खास तकनिको की जरूरत होती हैं । ऐसे बनने वाले चुमबुकिये क्षेत्र किसी भारी बाहरी विद्युतीय क्षेत्र से नष्ट नहीं किया जा  सकता । ये सबसे अच्छे चुम्बकीय पदार्थ से निर्मित होते हैं । ये कई प्रकार के होते है।
नैनो संरचना चुम्बक
कंपोसिट चुम्बक या मिश्र चुम्बक
विरल मृदा चुम्बक
धात्विक तत्व चुंबक
कल अनु चुम्बक

Ii. अस्थाई चुंबक | Temporary Magnet | asthayi chumbak

    ऐसी चुम्बकत्व जो बिना विद्यत धरा की मदद से उत्पन्न न हो सके ऐसे चुम्बक अस्थाई होते  हैं इसके द्वारा उत्पन्न चुंबकिये शक्ति तभी तक प्रभावशैली रहता है जबतक की उस पदार्थ से विद्यत धरा पास करती रहती है इसीलिए विद्यतचुम्बक भी कहते हैं। विद्युत चुम्बक बनाने में खास तौर पे नरम या पिटवा लोहे का उपयोग किया जाता है जिसे ये विद्युत धारा पाते ही बहुत जल्दी ही चुम्बकत्व हो जाते है है और विद्युत दरहा हटाते है चुंबकत्व व समाप्त हो जाता हैं ।

चुम्बकत्व ( Magnetism )

यह एक ऐसा गुण है चुंबक का जिससे वह किसी व चुम्बकीय पदार्थ या लोहे को अपने ओर आकर्षित या विकर्षित करने की प्रविर्ती  प्राप्त करता है इसी प्रविर्ती को चुंबकत्व कहते हैं। चुंबकत्व की मदद से हम लोहे, निकिल, कोबाल्ट या फिर इन सबके मिश्रण को पहचान या अलग अलग आसानी से कर सकते हैं ।

ध्रुव (pole) क्या है ?

चंबुक के सिरों के निकट का वह क्षेत्र जहां आकर्षण बल अधिक होता है चुंबक का ध्रुव कहलाता है अर्थात ध्रुव वो स्थान है जहाँ चुंबकत्व सबसे अधिक होती हैं और चुंबक दोनों ध्रुवों (N-S) को मिलने वाली काल्पनिक रेखा को चुम्बकीय अक्ष कहा जाता हैं।
ध्रुव दो प्रकार के होते हैं।
● उत्तर ध्रुव (North pole)
चुंबक का वह ध्रुव जो उत्तर दिशा की ओर संकेत करता है उत्तर ध्रुव कहलाता है।
● दक्षिण ध्रुव (south pole)
चंबुक का वह ध्रुव जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है वह दक्षिण ध्रुव कहलाता है।
 
◆ चुंबक के नियम को लिखे।
चंबुक के सजातीय ध्रुवों के बीच विकर्षण या प्रतिकर्षण होते हैं, जबकि विजातीय ध्रुव के बीच आकर्षण होता है, अर्थात
N - N के बीच प्रतिकर्षण
S - S के बीच प्रतिकर्षण
N - S के बीच आकर्षण
S - N के बीच आकर्षण
नोट :- चंबुक को स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर वह उत्तर दक्षिण दिशा में घूमकर रुक जाती है इसलिए इसे दिशा निर्देशक पत्थर या लोडस्टोन कहा जाता है। ऐसा करने पर चुम्बक का उत्तरी ध्रुव हमेशा उत्तर दिशा की ओर और दक्षिणी ध्रुव हमेशा दक्षिण दिशा की ओर होगा।

चुम्बकीय पदार्थ (magnetic substance ) :-

ऐसे पदार्थ जो चुंबक के चुम्बकीये क्षेत्र की ओर आसानी से आकर्षित या विकर्षित हो जाता हो, ( आकर्षित या विकर्षित कर लिया जाता हो ) चुंबकीय पदार्थ कहलाता है जैसे लोहा, कोबाल्ट, निकेल एयर इनके मिश्रण से बने पदार्थ आदि ।

अचुंबकीय पदार्थ  ( Non- magnetic substance ) :-

ऐसे पदार्थ जो चुम्बक के द्वारा ना ही आकर्षित किया जाए और ना ही विकर्षित किया जाए उससे अचुम्बक के पदार्थ कहते हैं जैसे कांच, कागज, प्लास्टिक, पत्थर, पीतल, एलमुनियम आदि ।

 चुंबकीय क्षेत्र ( magnetic field ) :-

चुम्बक के आस पास का वह क्षेत्र जहां तक की चुम्बकीय वस्तुओं को वह अपनी और आकर्षित कर सकता है वह क्षेत्र चुंबकीय क्षेत्र काहलाता है यह क्षेत्र चुम्बक के शक्ति पर निर्भर करता है यह किसी चुम्बक का ज्यादा या किसी का काम हो सकता है ये हमेसा अदृश्य रहता है इसके क्षेत्र का निर्धारण इसके आकर्षण शक्ति से की जाती हैं और जिस शक्ति के कारण चुम्बक किसी चुंबकीय पदार्थ को अपनी और आकर्षित कर पाता है चुम्बकीय बल ( Magnetic Force ) कहलाता ।
चुम्बकीय क्षेत्र के चुम्बकीय बल को जिस काल्पनिक रेखाओ की मदद से दिखाया जाता है उसे चुंबकिय बल रेखा ( magnetic field line ) कहा जाता हैं। इस काल्पनिक बल रेखा को दिशा हमेसा चुंबक के उत्तर ध्रुव निकल कर दक्षिण ध्रुव की ओर होती है ।

विद्युत चुम्बक | widutya chumbak

यह अस्थायी कि चुंबक है जिसे उत्पन्न करने के लिए बहुत ही शक्तिशाली विद्युत धारा का उपयोग किया जाता है। इसके क्रोड के लिए पिटवा लोहा या नरम लोहे का उपयोग में लाया जाता है क्योंकि इसकी चुम्बकीय प्रविर्ती बहुत ही अधिक होती है और ये शीघ्र ही चुम्बकीय संतृती प्राप्त नही करता है जिसे इसका उपयोग विद्युत चुंबक के क्रोड के रूप में लंबे समय तक किया जा सकता हैं। इसके निर्माण में लोहे के क्रोड पे  विद्युत रोधी तार को एक ही दिशा में लपेट जाता है ताकि जब इसमें विद्युत धारा एक ही दिशा प्रवाहित हो। जब इसमें धारा प्रवाहित होती है तो ये चुम्बकीत्व हक जाते है तथा धारा हटाते ही चुंबकत्व विलुप्त हो जाती हैं। विद्युत चुम्बक का शक्ति दो चीजों पे निर्भर करता है क्रोड पे लपेटे गए तारो की फेरो की संख्या एयर उनमे प्रवाहित जी जारी विद्युत धारा की सकती पर । क्क्योंकि को क्रोड पे लपेटे गए फेरो की की संख्या जितनी अधिक होगी उतनी ही अधिक मेग्नेटिक लाइन की रचना होगी और इन मेग्नेटिक लाइन की सकती इसमें प्रवाहित हो रही विद्युत धारा पे निर्भर करेगी। जितनी अधिक मेग्नेटिक लाइन होगी, किसी भी चुम्बकीय पदार्थ को उतनी अधिक शक्ति से अपनी और आकर्षित करेगी।
विद्युत चुम्बक के शक्ति के आधार पे किया जाता हैं। अधिक शक्तिशाली विद्युत चुम्बक का उपयोग खास तौर पे बड़ी बड़ी फैक्टरियों में किया जाता है जहाँ बहुत भारी भारी सामानों को इसके मदद से उठा कर एक स्थान से दूसरे स्थान लेजाने के लिए किया जाता है। इसके अलावे इसका उपयोग हमारे जीवन मे होने वाले रोजाना काम मे आनेवाले बहुत सारे छोटे बड़े यंत्रो और उपकरणों में भी होता है जैसे हमारे डोर बेल, टेलीफोन विद्युत टेलीग्राफ आदि बहुत सारे ऐसे उपकरण है आज के दौर में जिनका हम ईपयोग करते है। विद्युत घाटी में इसका उपयोग खास तौर पे होता है क इसकी जो विशेषता है कि विद्युत धारा प्रवाहित होते ही चुम्बकत्व हो जाना और धारा प्रवाह रोकते ही ही अचुमकत्व हो जाना इसी के कारण की जाती हैं।

कंपास  सुई क्या हैं ? Kanpas

प्रयोगशाला में चुम्बक एवं चुंबकीय प्रभाव का अध्ययन करने के लिए सुई के समान आकार वाले चुंबक का प्रयोग किया जाता है जिसे कंपास सुई कहा जाता है।
कंपास की सुई चुंबकिये पदार्थ का बना होता है जिसका आकार बिल्कुल सुई के समान होता है जो किसी आधारस्तंभ के बिंदु पर टिका रहता है यह संरचना कांच के एक बॉक्स के अंदर व्यवस्थित रहता है । बॉक्स के अंदर व्यवस्थित सुई किसी भी दिशा में घूमने के लिए वो स्वतन्त्र होती है जिसके फलस्वरूप उसके N और S पोल दिशा बताने में सक्षम हो पाते हैं । हम जानते है कि चुम्बक के असमान ध्रुव आपस मे एक दूसरे को आकर्षित करते है जबकि सामना ध्रुव एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं इसी सिद्धान्त के आधार पे कम्पास में लगा सुई के उत्तरी ध्रुव पृथ्वी के दक्षणी ध्रुव के द्वारा आकर्षित किया जाता है और दक्षणी उत्तरी ध्रुव के द्वारा इसी आधार पे कम्पास में लगे मैग्नेटिक सुई के दक्षिण ध्रुव पृथ्वी के उत्तर दिशा की और संकेत करता तथा सुई के उत्तरी ध्रुव पृथ्वी के दक्षिण दिशा को दर्शाता है।
क्षैतिजत संघटक के कारण पृथ्वी के चुम्बकीये क्षेत्र में कम्पास की सुई स्वतंत्र रूप से उत्तर और दक्षिण दिशा का संकेत देने में सफल तो हो जाते है पर इसमें कुछ त्रुटियाँ पायी जाती हैं।
(1) विचरण ( variation ) -
दिशासूचक के द्वारा बताए गए उत्तर वास्तव में उत्तर नहीं होते इसमें कुछ त्रुटि होती जो भौगोलिक और चुम्बकीय याम्योत्तर के बीच बने वाले कोण हैं। इसी के कारण कंपस आसानी से सही दिशा की ओर संकेत नही कर पाते । वास्तव में विचरन किसी भी चुम्बकीये पदार्थ का स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने से पृथ्वी के मुख्य अक्ष और चुम्बकिये मुख्य अक्ष के बीच बने वाले कौन का कोणीय मान है।
चुम्बकीये विचरण रेखा का चुंबकिय झुकाव शून्य के बराबर होती है जो पृथ्वी के चुम्बकीये ध्रुवो को मोलानेवाली कल्पनिक रेखा होती हैं
(2) विचलन ( deviation ) -
यह त्रुटि चुम्बकीये याम्योत्तर और दिशासूचक के पाठ्यांक में स्थानीय चुम्बकीये प्रभाव के कारण उतपन्न होती है जैसे किसी भी गाड़ी में उपयोगित इस्पात आदि के कारण । इसे दूर करने के लिए कम्पास स्टैंड में लोहे के तुलरे और अतरिक्त चुम्बक का स्तेमाल किया जाता है।

चुंबक का संक्षिप्त इतिहास

चंबुक का खोज सबसे पहले एशिया के माईनर के मैग्नीशिया नामक स्थान पर आज से लगभग आठ ईशा पूर्व में हुआ इसलिए इसे मैग्नेट (magnet) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है -  “ चुंबक “ और यह भारत में खास कर तमिलनाडु के क्षेत्र में पाए जाते है। धीरे धीरे इस पत्थर के गुण के बारे में मैग्नेसिया गाँव के लोगो को पता चलने लगा।
chumba जब इसके पास कोई वस्तु जो लोहा से बनी हो ले जाने पे वे इसकी ओर आकर्षित होता और इसके एक सबसे खाश गुण जब इसे किसी धागे क साथ स्वतंत्र रूप से लटकाने पे ये उत्तर दाक्षिण दिशा की ओर रुख कर रुकना, जिसका प्रयोग उस वक़्त लोग दिशा निर्धारण क लिए करने लगे और इसे Load stone और Leading stone आदि कहने लगे ।