सामाजिक जीवन | Social Life of India
आमतौर पर महाभारत का काल उत्तर वैदिक के अंत से लेकर बुध्द काल के काल को माना जाता है। महाभारत काल में सभी समाज का आधार पारिवारिक जीवन था।
संयुक्त्त परिवार | Joint Family
इस काल में कुल या परिवार के सभी सदस्य एक साथ रहते थे। कुल का प्रमुख कुलपति कहलाता था। कुलपति या थो पिता होता था या सबसे बड़ा भाई होता था। महाभारत काल से यह संदर्भ मिलता है की प्रायः परिवार में प्रेम होता था। आयु में छोटे सदस्य परिवार के सभी बड़े परिवारजनों का सम्मान करते थे और कुलपति सभी के कल्याण की चिंता करते हुए उनके साथ अच्छा व्यवहार करते थे। उस काल में निसंतान दंपति लड़का या लड़की को गोद ले सकते थे जो आगे चल कर उसके उत्तराधिकारी बनते थे। महाभारत काल में प्रायः छोटे भाई बहनो की शादी आयु में बड़े भाई या बहन से पहले करना बुरा माना जाता था। इस काल में पिता के मृत्यु के बाद सबसे बडा भाई अपने छोटे भाई बहनों का उतरदायित्व संभालेगा एवं अपने दायित्व का ईमानदारीपूर्वक निर्वाह करेगा।
आश्रम | The Ashrams
महाभारत काल में प्रत्येक व्यक्ति का जीवन एक खास व्यवस्था पे आधारित होता थाउस काल में आश्रम विकसित जरूर हुए थे। लेकिन इसमें कोई जटिलता नहीं थी. इनका प्रभाव उस समय जनता के जीवन पर बहुत था इसके कारण ही लोगों का नैतिक उत्थान हुआ। आश्रम व्यवस्थाओं को मुख्य चार भाग में बांटा गया था।
ब्रह्मचर्य - यह जीवन का वह समय काल होता था जब कोई व्यक्ति विद्यर्थि जीवन में हो एवं वह अध्यापन में धार्मिक ग्रंथो का अध्य्यन कर रहा हो। महाभारत काल में शिक्षा मुख्यरूप से गुरु कुल में दिए जाते थे। एवं उन्हें वही रहना होता था। स्वयं अपने सारे काम करने होते हैं।
गृहस्थ - इस काल में व्यक्ति अपनी शिक्षा को पूरी करने के बाद वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते थे। गृहस्थ जीवन में व्यक्ति आमतौर पे पारिवारिक जीवन का निर्वाह करते है जीका सुरवात शिक्षा समाप्ति के बाद शादी से होती थी। और अपने ब्रह्मचर्य को त्याग कर गृहस्थी के बंधनो में बांधते थे।
वानप्रस्थ - यह आश्रम का वह काल है जब कोई भी गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति अपने अपने जीवन काल में त्याग का जीवन बिताता था और अपने गृहस्थी के बंधनो से मुक्त्त होने का प्रयत्न करता था।
सन्यास - माहाभारत काल में जब कोई मनुष्य अपने परिवार और समाज को कि छोड़ कर एवं सभी पारिवारिक और सामाजिक बंधनों त्याग कर तपस्वी के रूप में पूर्ण आत्मसंयम का जीवन बिताता था। पर यह आश्रम व्यवस्था निम्न वर्ग पे लागू नहीं की जाती जाती थी। क्योकि उस समय उन्हें धर्म ग्रंथ पढ़ने का अधिकार नहीं था। अन्य सब के लिए यह जीवन का नियम था किन्तु यह कहना कतीं था कि कितने लोग इसके पालन करते थे।
जाती प्रथा | Cast System
जाती प्रथा ने प्राचीन भारतीय समाज को स्थायित्व प्रदान किया। उसने देशी और विदेशी दोनों तत्वों का समावेश प्राचीन भारतीय समाज में आसानी से कर दिया क्योकि उनके लिए यहाँ के जाति आधिक्रम में स्थान था। यह उल्लेखनीय है की अनेक प्राचीन समाजो में जो नग्न शोषण उन दिनों चल रहा था जैसे कि गुलामी की प्रथा वह भारत का नहीं था परन्तु जब भारत में विदेशियो का आगमन हुआ तो इस प्रथा का चलन भारत में भी तेजी से होने लेगा। भारत में जातियों की संख्या बहुत अधिक थी। और जाती को मानने वाले लोगो के बीच संघर्ष भी बहुत था। इस समस्या का धर्म में नही कोई खास उपाय नहीं बातये गए थे। इसलिए वर्ण व्यवस्था किया गया। सामाजिक कर्तव्यों के सुव्यवस्थित तरीके से निर्वाह के लिए वर्ण व्यवस्था को अलग-अलग भागो में बांटा गया।
वर्ण व्यवस्था | Cast system
व्यवहारिक व्यवस्था के लिए धर्मशास्त्र में मनुष्य समाज का विभाजन चार भाग में किया गया। जो उनके कर्तव्यों के आधार पर किया गय था। जिन्हें वर्ण का नाम दिया गया। मानव जीवन के मुख्य कर्तव्य - शिक्षा, रक्षा, व्यापार और सेवा के आधार पे वर्ण को चार भाग में बांटा गया। चारों वर्णों के मुख्य कर्तव्यों को पूर्ण एवं पुष्ठ बनाने के लिए इसके सहायक कर्तव्य भी बनायी गयी। धर्म में वर्ण के लिए व्यापक व्यवस्था किया गया।
भारतीय परम्परा में वर्ण विभाजन की जो व्यवस्था की गयी उसके अनुसार वर्ण को चार भाग में बंटा गया। भारत में जातियों की संख्या बहुत अधिक थी। अतः वर्ण की तुलना जाती से करना सही नही है। लोगों द्वारा जन्म से ही अपने वर्ण को मानने के कारण ही समाज में जाती और वर्ण एक दूसरे का पर्याय बनता गया। भारतीय धर्म शास्त्र जीवन की एकरूपता के पक्ष में नही थे इसीलिए धर्मशास्त्रो में वर्ण सब्द का प्रयोग किया गया और ये चार वर्ण है - ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
स्त्रियों की स्थिति | Possition Of Women
जैसा की पहले से ज्ञात है की महाभारत का काल उत्तर वैदिक काल से गौतम बुद्ध के काल को माना जाता है। इस काल में स्त्रियों को कोई विशेष अधिकार नही थे। स्त्रियों को पैतृक सम्पति में स्वामित्व का अधिकार नही था। वे अपने पारीक सम्पति ककी स्वामी नहीं बाँसक्ति थी। वैसे बहुत सी बातों में उन्हें स्वन्त्रता थी। स्त्री स्वेम्बर में अपना वर स्वाम चुन सकती थी। विधवाओ को पुनर्विवाह करने का अधिकार था। उस समय की स्त्री साधारणतः अपने देवर से विवाह करती थी। कुछ बातों में स्त्री का स्तर , बाद में शुद्र के समान हो गयी। परिवार में पुत्रियों के अपेक्षा पुत्रों का अधिक मान सम्मान होने लेगें।
विवाह प्रणालीयां | Types of Marriage
महाभारत काल में भारत में शादी की अनेक प्रणालियां प्रचलित थी। जिनमे कुछ अति प्रमुख थे जिनका बारे में धर्मग्रन्थो में लिखे गए हैं। धर्मग्रन्थो में खाश कर ब्रह्म विवाह, प्रजापति विवाह, प्रेम विवाह, असुर विवाह, देव विवाह, गंधर्व विवाह, राक्षस विवाह, पशाच विवाह ये सभी ऐसे है जिनके उल्लेख धर्मग्रन्थो में मिलते हैं।
शिक्षा | Education
महाभारत काल में शिक्षा का विकसित हो गई थी। उपण्यन संस्कार द्वारा जब बच्चों को ब्रह्मचर्य आश्रम में भेजे जाते थे । बच्चे गुरु के आश्रम में रहकर ही सारी विद्या प्राप्त करते था। गुरुकुल में रहते हुए उन्हें गुरु की सेवा करनी होती थी। हवन के लिए लकडियाँ थोड़ कर लाना, चूल्हा जलन, भिक्षा माँगना आदि कार्य विद्यार्थी को करने होते थे। उस समय विद्यार्थी बिना किसी कोष शुल्क के पढ़ते थे। क्योकिं उस काल में विद्या को शिक्षा को दन्त के श्रेणी में रखा जाता था। सामन्यतः उस समय भाषा ,व्याकरण, सामान्य गणित के साथ - साथ नैतिक शिक्षा भी दिए जाते थे। राज परिवार के सदस्यों को सामान्य शिक्षा के अतिरिक्त अस्त्र-शास्त्र चलने की भी शिक्षा गुरु ही दिया करते थे।
खान-पान | Food and Drink
गेहूं, चावल, मक्खन, घी, के साथ-साथ फल और कुछ लोग मांस-मछलियों का भी उपभोग करते थे। प्रायः मांस के लिए बकरे को काटते थे। दुधारू पशुओ का हत्या सामाजिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता था। घोड़े का मांस भी खाया जाता था। जैसे की अश्वमेघ से ऐसा पता चलता है लोगों द्वारा मदिरा पान भी किया जाता था। लेकिन पारिवरिक लोग इन्हें अच्छा नही मानते थे।
मनोरंजन | Entertainment
महाभारत काल में मैदानी खेल में कुश्ती, पहलवनी, गदा दुंद, रथों का दौड़, निशानेवज़ी आदि प्रमुख लोकप्रिय खेल हुआ करते थे। इसके अतिरिक्त लोगों के बीच पासा, जुवा आदि खेल भी बहुत प्रचलित था। लोग नृत्य और वाद्यवृंदन में भी बहुत रुचि लेते थे। स्त्रियाँ प्रायः नृत्य और संगीति सीखती थी। महाभारत काल में बांसुरी, बीणा, ढोल, इत्यादि प्रशिद्ध वाद्ययंत्र हुआ करते थे।
वस्त्र एवं आभूषण | Dress & Ornaments
इस काल में सूति वस्त्र के साथ-साथ रेशमी वस्त्र वी पहने जाते थे। रेशमी वस्त्र खास कर धनी लोगों के पसंदीदा वस्त्रों में से थे और वे ऊनि वस्त्र भी धारण करते थे। अधिकांश पुरुष सिर पर पगड़ी बाँधा करते थे। प्रायः स्तरीय भी सिर को ढकने लिए कभी कभी पगड़ियों का प्रोग करती थी। कपड़ो को सुंदर बनने के लिए उसपर पढ़िए किया जाता था। कढाई किये गए कपड़े लोगों के द्वारा बहुत पसंद किये जाते थे। कड़ाई किये गए वस्त्रो को लोगों द्वारा विशेष पसंद किये जाते थे। केसरिया रंग भी विशेष रूप से परुषों के लिए पसंद किये जाते थे। स्त्री, पुरुष विभिन्न धातुओं के आभूषण पैंट थे।
चरित्रहीनता | Degeneration Character
महाभारत महाकाव्य से अनेक उद्धरण मिलते हैं कि लोगों मिलते हैं की लोगों कि जीवन नैतिक दृष्टि से गिर गया था। राजा और धनी लोग एक से ज्यादा स्त्रियों से विवाह करते थे। कहीं-कहीं एक ही महिला से कोई भाई शारीरिक संबंध रखते थे। शत्रुओं को धोखे से मारने को कोई बुराई नहीं समझी जाती थी। वैश्या गमन, जुआ खेलना, गाना बजाना और शराब पीना उच्च वर्ग के लोगों में आम बात थी।
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