जव्लामुखी | Volcano

ज्वालामुखी किसे कहते हैं?

ज्वालामुखी भू-धरातल पर वह छिद्र है जिससे प्रज्वलित गैस, तरल लावा, शैलेखंड आदि विस्फोट के साथ फुट कर धरती के गर्भ से बाहर निकलते हैं। यह निकले हुए लावा भू धरातल पर आकर  चित्र के चारों ओर एक शंक्वाकार पर्वत का निर्माण करता है जो ठंडा होकर चट्टान में बदल जाते हैं। इस संपूर्ण क्रिया को ज्वालामुखी उदभव ( Vulcanism ) कहते हैं। ज्वालामुखी का अग्रेजी नामकरण रोमन लोगो के अग्नि देवता वल्कन के नाम पर किया गया है।

Volcano | jwalamukhi

ज्वालामुखियों का उद्गार मुख्यतः दो प्रकार से होता है।  जब लावा एवं अन्य ज्वालामुखी पदार्थ लंबे विदरो से होकर धरातल पर उत्सर्जित होते हैं तो इस प्रकार की शांत ज्वालामुखी क्रिया को विदरी उद्गार ( Fissure Eruption) कहते हैं।
इसके विपरीत यदि ज्वालामुखी उद्गार विस्फोट के साथ शंकु रूपी पर्वतों के केंद्रीय मुख से हो तो वह केंद्रीय उद्गार (Centre Eruption) कहलाता है। इस तरह के उद्गार में गैसों का उत्सर्जन  अधिक होता है इसके मुकाबले में लावा का उत्सर्जन बहुत कम होता है इस तरह के ज्वालामुखी किधर का व्यास 100 फ़ीट तक हो सकता है। अतः जो भी लावा विस्फोट के दौरान उनसे उत्सर्जित होता है वह इनके चारो ओर जमकर  लगभग शंक्वाकार या कभी-कभी टीले जैसा या गुंबद के आकार का निर्माण करता है। कभी-कभी इसकी ऊंचाई बहुत अधिक और विशाल प्रकट करता है। विस्फोट की तीव्रता उद्गार के प्रकार एवं अन्य स्थितियों पर निर्भर है। सन 1879 ईस्वी में घटित इटली का विसुवियास उद्गार तथा 1883 में हिंदेसिया में हुआ क्राकोटोआ ज्वालामुखी उद्गार भीषण विस्फोट के उदाहरण है। क्राकोटोआ ज्वालामुखी विस्फोट की तीव्रता लगभग 5000 मेगाटन उद्जन ( Neculiar ) बम के विस्फोट के बराबर थी।

Volcanic Pipe | ज्वालामुखी नाल

अधिकांश ज्वालामुखी केंद्रीय प्रकार के होते हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखी शंकु रूपी होते हैं। विस्फोट के दौरान ज्वालामुखी के पदार्थ लावा, गैस, राख आदि एक नलिका से होकर बाहर आते हैं। इस नलिका को ज्वालामुखी नाल (Volcanic Pipe) कहते हैं

Volcanic Cone | ज्वालामुखी शंकु

कभी-कभी प्रमुख नाल अन्य छोटे नालों में विभक्त हो जाते हैं। नाल से बाहर आया तरल एवं ठोस पदार्थ उसके चारों ओर एकत्रित होने लगता है और धीरे-धीरे नाल के चारों ओर एक शंकुरुपि रचना निर्मित होती है जिसे ज्वालामुखी शंकु ( Volcanic Cone )कहते हैं।
शंकुओ का आकर एवं आकृति उद्गार की प्रकृति, अवधि और ज्वालामुखी पदार्थ की विशेषता पर निर्भर करती है। प्रमुख ज्वालामुखी छिद्र के ठीक ऊपर शंकु के शिखर पर एक गर्त या विवर ( Crater ) होता है। ये गर्त ज्वालामुखी के उद्गार और विस्फोट के कारण निर्मित होता है। इन गर्त की गहराई और व्यास उद्गार के प्रकार एवं विस्फोट की तीव्रता पर निर्भर करती है। प्रमुख छिद्र के समान शाखा छिद्रों पर भी शंकु एवं विवर निर्मित होते हैं। शाखा छिद्रों के शंकुओ को गौण शंकु, विवरों को द्वितीयक विवर ( Satellite Centre ) तथा इन्हें स्पर्श ज्वालामुखी (Lateral Volcano ) कहते हैं।

Caldera | जव्लामुखी कुण्ड

कभी-कभी ज्वालामुखी शंकु का ऊपरी भाग अवतालन ( Sibsidence )और भीषण विस्फोट के कारण ध्वस्त हो जाता है। इस प्रकार वृहत विवरों का निर्माण होता हैं। इस विशाल विवरों का व्यास 1 किलोमीटर से 50 किलोमीटर तक हो सकता है। इन्हें ज्वालामुखी कुंड कहते हैं। जापान में हैंगशू का बंडाई ज्वालामुखी का कुंड विष्फोत्व तथा हवाई द्वीप का माउण्ट किलाऊ जव्लामुखी कुण्ड, अवतालन के कारण निर्मित हुए हैं।
केंद्रीय उद्गार द्वारा निर्मित ज्वालामुखी की विशेषता उनमें शंकु की उपस्थिति है। उत्पत्ति एवं प्रकृति के आधार पर शंकुओ के तीन प्रकार पहचाने जा सकते हैं। लावा के जमाव पर 2-10 डिग्री ढाल वाले शंकु को लावा शंकु ( Lava Cone )  कहते हैं। यदि शंकु का निर्माण लावा एवं अन्य पदार्थों के संचय पर हो और ढाल अधिक हो तो ऐसे शंकु को मिश्र शंकु ( Composition Cone ) कहते हैं। कभी-कभी शंकु केवल ज्वालामुखी क्षिप्त पदार्थों के संचय पर ही होता हैम इस प्रकार के शंकु छोटे होते हैं इन्हें सिणडर को कहते हैं।
Type of Volcano |  ज्वालामुखी का प्रकार
जव्लामुखी को उनके बनावट, सक्रियता और उद्गार के आधार पर मुख्यत भागों में बंटा जाता है।

सक्रियता के आधार पर वर्गीकरण


Active Volcano | जाग्रित या सक्रिय जव्लामुखी

ज्वालामुखी जो कुछ समय पहले ही फटा हो या फट रहा हो एवं निकट भविष्य में फटने की आशंका वैज्ञानिकों द्वारा जाहिर किया जा रहा हो तो ऐसे ज्वालामुखी सक्रिय ज्वालामुखी के श्रेणी में आते हैं। या फिर उसमें से समय समय पर गैस का निकल या फिर किसी व दरार का बना भूकंप आदि जैसे प्रकृति घटना के संकेत उसकी सक्रियता को दर्शाता है।
Dormant volcano | प्रसुप्त ज्वालामुखी
ऐसे जव्लामुखी जो बीते कुछ सालों पहले तो वो उद्गारित होते रहे थे पर लंबे समय से किसी भी उद्गार का कोई संकेत या सक्रिय नही है। इस प्रकार के जव्लामुखी के आस पास के क्षेत्रों में समय समय पर हल्के भूकंप के झटके महसूस किए जा सकते है और इसके निकट बहने वाली झीलों, झरनों,नदियों के पानी सामान्य गर्म से अधिक गर्म हो जाते हैं। ऐसे जव्लामुखी के अंदर मैग्मा मौजूद होते है पर इसमे किसी भी प्रकार के आपदा जैसी गतिविधि नही होती।

Dead Volcano | मृत जव्लामुखी

ऐसे जव्लामुखी जो लंबे समय से किसी भी विस्फोट नही हुआ हो और निकट भविष्य में भी ऐसे कोई विस्फोट का कोई संकेत ना हो। मृत ज्वालामुखी के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि वह अब भविष्य में कभी नहीं करेंगे क्योंकि उसके अंदर का सारा मैग्मा खत्म हो चुका है एवं हुआ अब ठंडे हो चुके हैं हम तथा उसके सारे गैस भंडार भी खत्म हो चुके हैं।  अतः ऐसे ज्वालामुखी जिससे निकट भविष्य में किसी भी प्रकार की विस्फोट एवं ऊंट गाड़ी घटना का कोई संकेत ना मिल रहा हो वैज्ञानिकों द्वारा उसे मृत माना जाता है। सामान्य भाषा में कहे तो कोई भी मृत ज्वालामुखी के चारों ओर उसके मैग्मा ठंडा होकर एक चट्टान का निर्माण कर देता है

Difrence between Dormant and Dead Volcano | प्रसुप्त और मृत जव्लामुखी में अंतर

प्रस्तुत और मृत्यु ज्वालामुखी को लेकर सभी वैज्ञानिकों का अपना अपना मत है किसी भी वैज्ञानिक के लिए सही सही बता बता पाना मुश्किल है कि कोई जव्लामुखी मृत है या प्रस्तुत।  वैज्ञानिकों के एक theory के अनुसार अगर कोई ज्वालामुखी इतिहास में कभी भी अगर फटा है तो उसे पुनः पटने के लिए आंतरिक दाब बनाने में लगभग एक से डेढ़ लाख साल तक का समय लग सकते हैं। ऐसे ज्वालामुखी को वैज्ञानिकों द्वारा सुप्त या सोया हुआ माना जाता है ना कि मृत ज्वालामुखी।

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