भारतीय विश्व विरासत | Indian world Heritage

यूनेस्को की विश्व विरासत सूची | list of UNESCO world Heritage

यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत की सूची में शामिल की गई भारतीय धरोहर में कुछ ऐतिहासिक इमारते किला मंदिर स्टेशन घाट आदि हैं, जिसकी सूची एवं उनके शामिल होने की वर्षा और उससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बाते वर्तमान में उसकी स्थिति आदि का विवरण दिया गया है। जी आगामी प्रतियोगिता परीक्षाओं के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

आगरा का ताज महल

   ताजमहल दुनिया के सात अजूबों में से एक जिसे शाहजहां ने अपनी पत्नी बेगम मुमताज महल के याद में बनवाया था जो उत्तर प्रदेश राज्य में साथ है। इसे बनवाने में के लिए संगमरमर राजस्थान के मकराना से मंगवाया जाता था। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला और फारसी कला का एक बेजोड़ मिश्रण का नमूना है। जिसमें आप संगमरमर पर बने बेहतरीन कलाकारी और डिजाइनों को देख सकते हैं जो आज भी तरोताजा और नया सा है। ताजमहल के बाहरी हिस्से में इसकी सजावट के लिए कई उद्यानों को लगवाया गया है। जिसमें पत्थर और प्लास्टिक को के इस्तेमाल से कई मनमोहक डिजाइन बनाए गए।
   वातावरण और मौसम तथा वातावरण में बढ़ते ताप के वजह से ताजमहल साल दर साल अपनी चमक को खो रहा है। इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि इसके आसपास लगे फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीली धुँवा जिसमें कई प्रकार के रासायनिक तत्व मौजूद होते हैं जो ताजमहल के गुंबद की सुंदरता को नुकसान पहुंचा रही है। सरकार ने इसके लिए कई प्रशंसा जनक कार्य किए हैं आगरा के समीप कई बड़ी फैक्ट्रियों को किसी और जगह स्थानांतरित करने करने को कहा है एवं कम से कम कार्बन उत्सर्जन हुआ इसके लिए उपाय करने के रास्ते निकालने के निर्देश दिये गए हैं।
  दुनिया के इस अजूबों में शामिल यमुना नदी के किनारे बने ताजमहल को यूनेस्को ने विश्व विरासत की सूची में साल 1983 में सामिल किया गया था।

आगरा का किला

    इसी वर्ष 1983 आगरा का किला जो मुगल शासन काल के समय 1526 में पानीपत के युद्व के बाद बाबर इसी किला में रहे थे। साल 1530 में आगरा के किले में ही हुमायूँ का ताजपोशी हुए और वे बाबर के बाद बादशाह बने। 1558 ईस्वी में अकबर स्थानांतरित होकर अकबर आगरा आए और इस किले का निर्माण शुरू किया अकबर का इतिहास का रघु फजल के अनुसार अकबर के यहां आने से पहले इस किले को बादलगढ़ कहा जाता था अकबर ने राजस्थान के बलौली नामक स्थान से लाल पत्थर को आयात कर इसके लिए का निर्माण कार्य पूर्ण करवाया। पानीपत के तीसरे युद्ध 1750 में महादजी शिंदे ने इस किले पर अपना कब्जा कर लिया और यह किला मराठा साम्राज्य के अधीन चला गया ।

अजंता की गुफाएं

अजंता की गुफाएं को 1983 में यूनेस्को ने विश्व विरासत के की सूची में भारतीय धरोहर को शामिल किया जो औरंगाबाद महारास्ट्र में स्थित है जिसका निर्माण दो चरणों में हुआ होगा ऐसा मकना जाता हैं पहला चरण दूसरी सतवादी ईशा पूर्ब और दूसरा चरण लगभग400 से 650 ईसवी के आसपास किया गया था। इन गुफाओं को चट्टान काट कर बनाया गया है जिनके दीवार पर प्राचीन चित्र बने हैं जिनमे भगवान बुद्ध के बारे में बताया गया एवं उसके पुनर्जन्म जन्म के विषय में भी चर्चा की गई है।
  प्राचीन समय में यह गुफा खराब मौसम में यात्री राहगीरों व्यापारियों भिक्षु दार्शनिकों के लिए आश्रय स्थल के रूप में काम आता था। कई तीर्थ यात्रियों, दार्शनिकों पुराणों में इसके कई साक्ष मिलते है। इसके दीवारों पे अति प्राचीन दीवार पेंटिंग्स बानी है।

एलोरा की गुफा

एलोरा की गुफा को यूनेस्को द्वारा 1983 में विश्व विरासत के सूची में शामिल किया गया था। एलोरा की गुफाएं महराष्ट्र के औरंगाबाद शहर में स्थित है। एलोरा की गुफाओं का निर्माण 5वी से 8वी सदी के मध्य करवाया गया था। भारत में यह सबसे बड़े रॉक कटिंग बने मठ हैं। अब 34 गुफाओं का एक समूह है जिसमें से बहुत गुफाओं का नष्ट होने के कारण पुरातत्व खुदाई हो सकती है। एलोरा की गुफाओं में मुख्य रूप से हिन्दू, बोद्ध और जैन धर्मो के बारे में गुफाओं के दीवार पर चित्रित किया गया है। एलोरा के गुफ़ा मुख्य मार्ग के समीप होने के कारण ये तीर्थयात्रियों व्यापारियों के लिए विश्रामालय काम करता था। समय ऐसे गुफा भिक्षु के लिए बनाए जाते थे।

कोणार्क का सूर्य मंदिर

  कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा में स्थित है जिसका निर्माण चंद्रभागा नदी के किनारे किया गया है। यह मंदिर सूर्य देवता भगवान सूर्य देव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम ने करवा था। 1225 में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया इसकी बनावट एक रथ के समान जिसमें बारह पहियों एवं सात घोड़े सहित एक बृहत रथरूपी मंदिर का दर्शन कर सकते है। 18वी सदी में इसके प्रवेश द्वार में परिवर्तन किया गया जिससे अरुणास्तम्भ को शेर दरवाजा या शिंघोर में बादल दिया गया। साल 1984 में इसे विश्व विरासत में शामिल किया गया।

महाबलिपुरम् का स्मारक समूह

   महाबलिपुरम् का स्मारक समूह चेन्नई के समीप तमिलनाडू के कांचीपुरम जिले में स्थित है इसे स्मारक समूह पल्लव वंश द्वारा निर्माण करवाया गया था जिसमें कया स्मारकों का एक श्रृंखलाबद्ध तरीके से विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्ति से सुसज्जित की गई है। इस मंदिर में ज्यादातर हिंदू देवी देवताओं की मूर्ति ग्रेनाइट के पत्थरों को काटकर बनाया गया है । जो उस काल के हसीन वास्तुकला का भी एक उदाहरण है ग्रेनाइट के कई मूर्ति भगवान शिव जी की है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। बलि पुरम स्मारक समूह बंगाल की खाड़ी के समीप कोरोमंडल तट के पास स्थित है। महाबलीपुरम स्मारक समूह का निर्माण पल्लव वंश के द्वारा सातवीं सदी के आसपास करवाई गई थी। जिसमें आज महाभारत काल के पांडवों का रथ को भी रखा गया है इसमें कई राजाओं द्वारा साल दर साल बदलाव किए गए 8 वीं शताब्दी में पल्लव वंश के एक राजा ने अपने क्षेत्र को सुनाने से बचाने के लिए अपने क्षेत्र में जितने भी ऐतिहासिक धरोहर, मंदिरों, गांवो आदि सभी को सुरक्षित करने के लिए पत्थरों की एक मोटी दीवार खड़ी कर दी।
  1984 ईस्वी में यूनेस्को ने इस स्मारक समूह को एक ऐतिहासिक धरोहर तथा विश्व विरासत के रूप में घोषित किया और इसे अपने ऐतिहासिक धरोहर की सूची में जगह दी।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का ऐतिहासिक महत्व

  काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का ऐतिहासिक महत्व है कि एक बार मैरी कर्ज़न जब भारत ये तो आसाम गयी । काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान तत्व संरक्षित नहीं था उसने इस में घूमते हुए इस वन में राइनो देखा और इसकी पुष्टि हो जाने के बाद कि वह राइनो ही था। वहां से वापस आने के बाद उन्होंने अपने पति लॉर्ड कर्जन से इस वन क्षेत्र को संरक्षित करने तथा किसी भी प्रकार के जानवर की शिकार पर रोक लगाने की अपील की इसके बाद सन् 1916 में लौट कर देने इस क्षेत्र को संरक्षित कर दिया तथा इसमें किसी भी प्रकार के जानवर के शिकार पर पाबंदी लगा दी।
   आज आप काजीरंगा नेशनल पार्क में विंडो के साथ-साथ कई प्रवासी पक्षियों तथा और भी कई विभिन्न प्रकार के जंगली जीवो को देख सकते हैं आसाम सरकार के ताजा सर्वे के मुताबिक अभी वन क्षेत्र में 2401 से ज्यादा गैंडा मौजूद है।
   वर्ष 1985 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत की सूची में काजीरंगा नेशनल पार्क को विश्व विरासत के रूप में शामिल किया गया।

मानस वन्य जीव अभयारण्य

मानस वन्य जीव अभयारण्य हिमालय की तलहटी में बसा एक वन्य जीव अभ्यारण जिसका नाम ब्रह्मपुत्र नदी निकलने वाली एक शाखा मानस नदी के नाम पर रखा गया है। वर्तमान समय में मानस वन्य जीव अभ्यारण आसाम का सबसे बड़ा बाघ अभ्यारण, हाथी संरक्षण अभ्यारण एवं अन्य विलुप्त वन्यजीवों को संरक्षित करने का परियोजनाएं  को मूल रूप देने  का अभ्यारण बन चुका है। मानस वन्य जीव अभ्यारण का विस्तार  भारत के आसाम से लेकर  हमारे पड़ोसी देश भूटान के भी कुछ भागों में है  भूटान में इस अभ्यारण को रॉयल मानस पार्क के नाम से जाना जाता है। इस पार्क में कई विलुप्त प्रजाति जैसे की छत वाले कछुआ, गोल्डन लंगूर, पौगी हॉग आदि विलुप्त होने के कगार पर हैं उन्हें संरक्षण दिया जाता है। इस अभ्यारण को वन्यजीवों के लिए 1928 में संरक्षित किया गया एवं इसी वर्ष इन्हें राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया कुछ वर्ष बाद इन्हें 1973 में मानस जीव अभ्यारण के अंदर मानस जैव रिजर्व अभ्यारण बनाया गया। मानस वन्य अभ्यारण को यूनेस्को द्वारा 1985 इसलिए मैं विश्वव विरासत के रूप में मान्यता दिया गया ।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

  केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान - राजस्थान  के भरतपुर स्थित भरतपुर पक्षी अभ्यारण को ही केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है। इस अभ्यारण को  भारत सरकार द्वारा 1971 में  संरक्षित संरक्षित कर वन्यजीवों के लिए सुरक्षित किया गया। वर्तमान में इस अभ्यारण में 230 से भी अधिक केवल दुर्लभ पक्षी के प्रजाति  को सुरक्षित किया जाते हैं। इसके अलावा कई अन्य जीव जंतुओं की भी दुर्लभ प्रजातियां मौजूद है इसमें फूलों तथा जलीय जीवो  की भी प्रजाति को सुरक्षित करने का व्यवस्था इस अभ्यारण में किया गया है।
अभ्यारण में जलीय जीवो में मछली के केवल 50 प्रजातियां पाई जाती है भरतपुर राष्ट्रीय पक्षी अभ्यारण को 25 वर्ग के नाम से भी जाना जाता है अभ्यारण में कई तरह के प्रवासी पक्षी भी आते हैं। जिसमें सर्दियों के समय आने वाले साइबेरियन क्रेन जैसी पक्षी इस अभयारण्य में अपना बसेरा स्थापित करती है।
भरतपुर पक्षी अभ्यारण को यूनेस्को द्वारा 1950 ईस्वी में विश्व धरोहर के रूप में वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया गया।

गोवा के चर्च और मठ

1986 में यूनेस्कों ने पुराने गोवा के कुछ प्रमुख ऐतिहासिक चर्च और अभ्यारण को विश्व ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मान्यता दिया । पुराने गोवा जिसे वेलहा गोवा भी लाह जाता है। स्थानीय लोगो द्वरा पुराने गोवा को कोंकणी के रूप में जाना जाता है। यह स्थान भारत के ऐतिहासिक स्थल है। पुरानी गोवा राजधानी पणजी से पूरब दिशा के ओर 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस शहर का निर्माण 15 वीं सतवादी के समय मे बिजकपुर का सुलतान के द्वरा करवाया गया था। 16 वीं सतवादी के दौरान यही शहर को अपना राजधानी बनाया भारत में कार्य करने के लिए।

मुगल सिटी, फतेहपुर सिकरी

  चित्तौड़ और राणथम्भोर के युद्ध मे विजय प्राप्त करने के बाद अकबर ने 1526 में अपनी नयी राजधानी फतेहपुर सीकरी को बनाई जो उत्तर प्रदेश में आगरा शहर के समीप स्थित है। इस स्थान की दूरी अगर से 23 किलोमीटर के करीब थी जिसे 1571 से 1585 तक राजधानी के रूप में जाना जाता था। इस समय अंतराल में अकबर द्वारा कई निर्माण करवाये गए। जिनमें से कुछ बहुत की प्रसिद्ध है जैसे कि बुलंद दरवाजा उसके अलावा कोई और निर्माण हैं जैसे फतहपुर सीकरी का महल, इबादत खाना, जमा मस्जिद, नौबतखाने इत्यादि।
  यूनेस्कों द्वारा इस ऐतिहासिक मुगल सिटी फतेपुर सीकरी को वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में 1986 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में शामिल किया गया ।

12. हम्पी स्मारक समूह - कर्नाटक [1986]

13. खजुराहो मंदिर* - मध्यप्रदेश [1986]

एलीफेंटा की गुफाएं

एलीफेंटा की गुफाएं महाराष्ट्र के समीप अरब सागर में स्थित एलिफेंटा द्विप पर स्थित है जो मूर्ति कला के गुफाओं की एक श्रीनखला है जिसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता जिसमें हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म दोनों के मूर्तियों से बनाया गया है। इनके गुफाये मुख्य रुप से भगवान शिव को समर्पित है और दूसरा भाग भगवान गौतम बुद्ध को। इस गुफाओं का राख रखाव एवं देख रेख का काम भारतीय पुरातत्व विभाग की जिम्मेवारी है। इस गुफा की निर्माण काल 5वी से 8वी सदी के बीच का है। यूनेस्को द्वारा इसे साल 1987 में विश्व विरासत की मान्यता दी गई थी।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनल

छत्रपति शिवाजी टर्मिनल जिसे 1996 से पहले विक्टोरिया टर्मिनल केनाम से जाना जाता था। 1996 में इसे विक्टोरिया टर्मिनल या बोरीबंदर रेलवेस्टेशन के नाम से भी जाना जाता था उसके बाद इसे बदल कर क्षत्रपति शिवजी टर्मिनल कर दिया गया। इस टर्मिनल पे कुल 18 स्टेशन है, जहाँ सात उपनगर के लिए एवं कई लम्बी दूरी के लिए ट्रेनों का संचालन किया जाता है। छत्रपति शिवाजी टर्मिनल  से कई लोकल ट्रेनों का भी संचालन किया जाता है। क्षत्रपति शिवजी टर्मिनल महाराष्ट्र राज्य कि राजधानी मुम्बई में है जो मध्यपूर्व रेल का मुख्यालय है। जिसकी स्थपना 1887 में फेडरिक विलिमस ने किया था। जिससे साल 2004 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में जगह दी गयी।

माउंटेन रेलवे | पर्वतीय रेलवे

माउंटेन रेलवे, यूनेस्को ने भारत के पर्वतीय क्षेत्र में चलने वाले तीन ऐसे पर्वतीय रेलवे को विश्व विरासत के रूप में चयनित किया। इन पर्वतीय रेलवे को 1999 में यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल किया गया जिसमें प्रमुख रेलवे स्टेशन इस प्रकार है।
  • दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे : ब्रिटिश काल में दार्जिलिंग अंग्रेजों के लिए ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण लोगों को पहले घोड़े एवं अन्य जानवरों की पीठ पर सवार होकर पहुंचना पड़ता था या तो फिर ऐसी गाड़ियां जिसे कोई जानवर खींच रहा हो। दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का एक हिस्सा है जिसके सबसे निकटतम शहर सिलीगुड़ी है 1881 ईसवी में अंग्रेजों ने डार्लिंग और सिलीगुड़ी के बीच 2 फीट के छोटी गेज वाली ट्रेन संचालित करने का निर्णय लिया। जिसे आज टॉय ट्रेन के नाम से जाना जाता है। सिलीगुड़ी से दार्जलिंग का रास्ते मे ही दुनिया का सबसे ऊँचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन घूम है।
  • कालका शिमला रेलवे :  शिमला ब्रिटिश काल में यह ग्रीष्मकालीन राजधानियों में से एक था। शिमला में कई ब्रिटिश सेन्य मुख्यालय हुआ करते थे। यह मुख्यालय पर्वतीय क्षेत्र के तालहतियों में बने हुए थे। वर्तमान में शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। कालका हरियाणा का लोकप्रिय शहर है जिसकी दूरी शिमला से करीब 99.66km है। ब्रिटिश सरकार के द्वारा 1903 में दोनों शहरों के भीच रेल संचालित करने का निर्णय लिया गया जिसे आज कालका शिमला रेलवे के नाम से जाना जाता है।
  • नीलगिरी पर्वतीय रेलवे : ये रेल लाइन वर्तमान में उदममण्डलम और मेट्टूपालयम के बीच संचालित किया जा रहा है। इस रेल लाइन द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के कुल दूरी 40 किलोमीटर तय किया जाता है। अपने आरंभिक दौर में यह रेलवे लाइन कुन्नूर से जुड़ा हुआ था। 1908 में नीलगिरि पर्वतीय रेलवे का दायरा बढ़ाते हुए कुन्नूर से फर्नाहिल तक किया गया इसी वर्ष फिर इसे पुनः बढ़ाकर उदममंडलम तक किया गया। नीलगिरी एक पर्यटन स्थलों में से एक है। जब नीलगिरी के पहाड़ियों पे सिंगल लाइन ट्रैक पे रेलगाड़ी चलती है तो इन्हें ब्लू माउंटेन के नाम से भी जाना जाता है।

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